"* *बिठुडा*पिरान का इतिहास "
....
🙏जय श्री आई जी री सा🙏
...》 *या देवी सर्वभूतेषु श्रीआईजीरूपेण संस्थिता* .
*नमस्तस्ए नमस्तस्ए नमस्तस्ए* नमो नमः
》》 श्री आई माताजी ने अपने जीवन काल में बिलाड़ा में राठौड़ कुल के श्री गोविंददास जी एवं परमार कुल के श्री लक्ष्मणदास जी को प्रातः दर्शन करने बुलाया तब बिलाड़ा के श्री गोविंददास जी को बिलाड़ा लाल गद्दी का दीवान एवं श्री लक्ष्मणदास जी को बिठुडा पिरान की सफेद गद्दी का पीर नियुक्त किया था उनके बाद अनेक पीर हुए जो निम्न है अभी वर्तमान में पीरोसाहब श्री रावत सिंह जी परमार
... बिठुडा पिरान के पीरोसाहब हरिदास जी ने चाणोद ठाकुर को चानोद तालाब के पानी पर घोड़ा चलाकर श्री आई माताजी के परम भक्त होने का चमत्कार दिखाया था
*जय आईजीरी सा*
👍 अशोक सीरवी👍
🤙 बिठुडा पिरान पाली( राजस्थान)🤙
आई माता जी का चमत्कार
मां जीजी ने कुछ महिने नारलाई में रहकर अपने उपदेषों से आस पास के लोगों को लाभान्वित किया। लोग उनके उपदेषों से प्रभावित होकर उनके डोराबन्ध अनुयायी बने और आई पंथ से जुड़ते गए। जीजी (श्री आई माताजी) के डायलाणा में चमत्कार जेठ आषाढ का महीना था सूर्य की तेज गर्मी षरीर को झुलसा रही थी। ऐसे में मां जीजी नारलाई से भयंकर गर्मी में अपने नन्दी को साथ लेकर आई पंथ के प्रचार के लिए गांव-गांव उपदेष देती घूम रही थी। मां जीजी घूमती-घूमती गांव डायलाना आ पहुंची। भंयकर गर्मी एवं प्यास लगने के कारण मां जीजी थक गई थी। वह खेतों में हल चला रहे किसान मां जीजी के पास एकत्र हो गये और उनकी कुषलक्षेम पूछी। खेतों के आस-पास कोई वृक्ष नहीं था। किसानों ने बड़ की लड़की के बने हुए अपने हलों को इकट्ठा कर मां जीजी के विश्राम के लिये छाया की। मां जीजी ने किसानों से कहा-मुझे एवं नन्दी को बड़ी प्यास लगी है। किसान बोले माताजी आपके पीने के लिए तो हमारे पास जल है,परन्तु नन्दी को पानी पिलाने बहुत दूर ले जाना पड़ेगा। क्योंकि यहां आस-पास के तालाब में पानी नहीं है। जीजी ने हंसते हुए कहा-यहां पानी की कोई कमी नहीं है। आप लोग झूंठ क्यों बोल रहे हैं? किसानों ने हाथ जोड़कर कहा, माताजी हम सच कह रहे हैं। यहां पानी की बड़ी भारी कमी है। आस-पास के कुओं एवं तालाब में पानी सूख गया है। हम बड़े दुःखी है। जीजी ने कहा नन्दी को साथ ले जाकर देखो मुझे तो तुम्हारे तालाब में खूब पानी दिखाई दे रहा है। किसानों को मां जीजी के षब्दों पर विष्वास नहीं हुआ लेकिन नन्दी को साथ लेकर पानी पिलाने गये तो देखा कि तालाब पानी से लबालब भरा हुआ था। वे खुषी से झूम उठे,वे दौड़कर मां जीजी के चरणों में प्रणाम करने लगे। जीजी के चमत्कारों के बारे में पहले से चर्चा सुन रखी थी,परन्तु डायलाणा में जीजी के चमत्कार की बात जंगल में आग की भांति षीघ्र ही सारे गांव में फैल गई। लोग मां जीजी के दर्षन करने के लिए खेत में आने लगे। किसानों ने मां जीजी को गावं में चलने की प्रार्थना की। जीजी ने कहा मैं यहीं पर रात्री विश्राम करुंगी। तुम लोग अपने घर जाओ। देर रात्री तक जीजी के उपदेष सुनकर सभी लोग अपने-अपने घर लौट गए। प्रातः जल्दी ही स्त्री-पुरुष एवं बालक मां जीजी के दर्षनार्थ उमड़ पड़े,तो उन्होंने जो चमत्कार देखा तो देखते ही आंखें खुली रह गई। जिस स्थान पर किसान लोंगो ने अपने हल खड़े कर जीजी के विश्राम के लिये छाया की थी उस स्थान पर एक बड़ा छायादार बड़ का वृक्ष खड़ा था। उस बड़ के वृक्ष पर रोहिण का भी छोटा सा पेड़ खड़ा था। सभी के मस्तक श्रद्धा पूर्वक मां जीजी के चरणों में झुक गए। डायलाणा में आज भी सदारण बेरा पर एक बड़ का वृक्ष खड़ा है। यहां पर मां जीजी द्वारा स्थापित अखण्ड ज्योत आज भी जलती है। मां जीजी ने यहां कई दिनों तक विश्राम किया एवं यहां के लोगों को अपने उपदेषों से लाभान्वित कर अपना अनुयायी बनाया। यहां प्रतिवर्ष जेठ महीने में भव्य मेला लगता है।
जीजी (श्री आई माताजी) के भैंसाणा में चमत्कार श्री जीजी माता ने डायलाणा में काफी दिन रहकर अपनी यात्रा पुनः प्रारम्भ की । तब वे घूमती-घूमती भैसाणा ग्राम जा पहुंची। अपने नन्दी के साथ तालाब के पास से गुजर रही थी। तब सामने से कुछ ग्वाले अपनी भैसों को लेकर आ रहे थे तो आपस में कहने लगे देखो ! सामने एक वृद्धा कैसा स्वांग बना कर अ रही है। वे चिल्लाकर बोले ऐ डोकरी ! जरा दूर रहना कहीं हमारे जानवर को भडकायेगी। मां जीजी ने समझाया,तुम अपने जानवरों को लेकर चले जाओ वे नहीं भडकगें। फिर भी ग्वाले जीजी को भला-बुरा कहने लगे। वे ग्वाले बड़े ही अभिमानी,निर्दयी थे। लोगों की खड़ी फसलों में अपने जानवर चराना उनकी दिनचर्या थी। आस पास के गांवों के किसान उनके आंतक से दुखी थे। जीजी का अवतार तो दीन दुखियों की सहायता करने एवं अत्याचारी,अन्यायी एवं घमण्डियों का विनाष करने के लिए ही हुआ था। मां जीजी ने ग्वालों को श्राप दिया-‘‘जाओ तुम्हारी भैसें पत्थर की बन जायेंगी।’’ इतना कह कर जीजी आगे चल पड़ी। जब ग्वालों ने तालाब पर जाकर देखा तो उनकी भैसें पत्थर की हो गयी थीं। तब उन्हें चिन्ता हुई। उनमें से एक ग्वाला बोला हमनें व्यर्थ ही उस वृद्धा को छेड़ा व सताया था। हमें उस वृद्धा से माफी मांगनी चाहिए। हो सकता है,वह हमें क्षमा कर दें। नही ंतो हमारा सर्वनाष हो जायेगा। ग्वाले मां जीजी के पद चिन्हों को देखते हुए उनके पीछे भागे। वे जाकर मां जीजी के चरणों में गिरकर गिड़गिड़ाने लगे-मां जीजी हमें माफ कर दो। हम पापी हैं,दोषी हैं। मां हम बर्बाद हो जायेंगे। ये हमारी आजीविका का एक मात्र सहारा है। हमारे बाल-बच्चे भूखे मर जायेंगे। दया करो मां। मां जीजी ने उन्हें समझाया कभी घमण्ड मत करो। कभी भी अबला,वृद्धा और जानवरों को मत सताओ। खेतों में खड़ी फसलों को कभी नुकसान मत पहुंचाओं। ग्वालों ने मां जीजी के सामने प्रण लिया एवं वचन दिया कि भविष्य में ऐसा नहीं करेंगे। फिर जीजी ने उन्हें अपना अनुयायी बनाया। मां जीजी के चमत्कारों से पत्थर बनी हुई भैसों के निषान आज भी गांव भैसाणा के तालाब पर मौजूद हैं।
No comments:
Post a Comment