(खारड़िया) सीर वी समाज गौत्र
अपने - अपने गौत्र की कुलदेवी
१) श्री नागणेसी माता - राठौड़, वरपा
2) श्री अधरदेवी माता (आबु) - परमार, पंवार, काग, भायल, होम्बर, सिंंन्दरा
३) श्री आशापुरा माता (नाडोल) - देवड़ा, चोयल, सेबटा, चौहान, मुलेवा, सावडीया, सेवरिया
४) श्री गाजण माता (केरला स्टेशन, नियर पाली) - परिहार, लचेटा, परिहारिया
५) श्री खीमज माता (कोट-भीनमाल) - सोलंकी
6) श्री बाण माता (चित्तोड़गढ़) - गहलोत, खंडाला
७) श्री मोहटा देवी (सिवाणा गाँव) - मोगरेचा
८) श्री ब्राह्मणी माता (मंडोवर) - भूमलिया
९) श्री सुंधा माता - आगलेचा
राठौड़ व वरपा गोत्र की कुल देवी के बारे में जानकारी :- नागणेची माँ माता सब राठौड़ व वरपा गोत्र की कुलदेवी है। माता नागणेची का मुख्य मंदिर बाड़मेर में गांव नागणा में स्थित है।एक बार राव धुहड़ ( राव अस्थान का बेटा ) ने कनोज के पास के प्रान्त "गोड्याना " पर हमला किया। लेकिन वह उस में सफलता प्राप्त नहीं कर सका। अपनी वापसी पर वह कर्नाट से अपनी कुलदेवी "चक्रेश्वरी" की मूर्ति लाये और गाँव नागणा में नीम के पेड़ के नीचे मूर्ति स्थापित की। नीम राठोड़ राजपूतों का पवित्र पेड़ भी है। गाँव का नाम नागणा होने के कारण कुलदेवी "चक्रेश्वरी माता " को नागणेची माता के नाम से भी जाना जाता है। राठोड़ों के हर गाँव या ठिकाने में माता का थान हमेशा स्थापित होता है और नवजात शिशु का झड़ूला भी माँ नागणेची के मंदिर में ही उतरा जाता है| राठौड़ो व वरपा गोत्र की कुलदेवी " नागणेची " है। देवी का ये " नागणेची " स्वरुप लौकिक है। 'नागाणा ' शब्द के साथ ' ची ' प्रत्यय लगकर ' नागणेची ' शब्द बनता है , किन्तु बोलने की सुविधा के कारण ' नागणेची ' हो गया। ' ची ' प्रत्यय ' का ' का अर्थ देता है। अत : ' नागणेची ' शब्द का अर्थ हुआ - ' नागाणा की ' . इस प्रकार राठोड़ो की इस कुलदेवी का नाम स्थान के साथ जुडा हुआ है। इसीलिए ' नागणेची ' को ' नागाणा री राय ' ( नागाणा की अधिष्ठात्री देवी ) भी कहते है। वैसे राठौड़ो की कुलदेवी होने के कारण ' नागणेची ' 'राटेश्वरी ' भी कहलाती है। नागाणा एक गाँव है जो वर्तमान में राजस्थान प्रदेश के बाड़मेर जिले में आया हुआ है एक कहावत प्रसिद्ध है ' नागाणा री राय , करै बैल नै गाय '। यह कहावत प्रसंग विशेष के कारण बानी। प्रसंग यह है कि एक चोर कहीं से बैल चुरा कर भागा। पता पड़ते ही लोग उसका पीछा करने लगे। भय के मारे वह चोर नागाणा के नागणेची मंदिर में जा पंहुचा और देवी से रक्षा की गुहार करने लगा कि वह कृपा करे , फिर कभी वह चोरी का कृत्य नहीं करेगा। अपनी शरण में आये उस चोर पर नागणेची ने कृपा की। जब पीछा करने वाले वहां पहुंचे तो उन्हें देवी - कृपा से बैलो के स्थान पर गाये दिखी। उन्होंने सोचा कि चोर कहीं और भागा है और वे वहां से चले गए। इस प्रकार चोर की रक्षा हो गई।कुलदेवी 'नागणेची ' का पूर्व नाम ' चकेश्वरी ' रहा है। राठौड भी मारवाड़ में आने से पूर्व 'राष्टकूट ' रहे है कन्नौज का राज्य अपने अधिकार से निकल जाने के बाद जयचंद के वंशज राव सीहा मारवाड़ की ओर यहां अपना राज्य स्थापित करने के लिए प्रयास करने लगे। उन्होंने पाली पर अधिकार किया। उनके पश्चात् उनके पुत्र राव आस्थान ने खेड़ विजित किया।आस्थान के पुत्र राव धुहड़ ने बाड़मेर के पचपदरा परगने के गाँव नागाणा में अपने वंश की कुलदेवी को प्रतिष्ठापित किया। आज बाड़मेर जिले की पचपदरा तहसील का स्थान धार्मिक आस्था के कारण प्रसिद्धि प्राप्त है। यहा प्राकृतिक मनमोहक स्वरुप की छठा देखते ही बनती है। पहाड़ो की ओट में मरुस्थल के अचल में,सुखी झाड़ियों के मध्य स्थित राव धूहड़जी का बनाया हुआ श्रद्धा का एक प्रमुख केन्द्र है। यहां पर स्थापित माता की मूर्ति का आज तक राठौड़ वंश अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा - अर्चना करता आया है। यह निज मंदिर धार्मिक दृष्टि से भी बड़ा महत्वपूर्ण है तथा राठौड़ वंश के अतिरिक्त भी अन्य जातियों के श्रध्दालुओ का आस्था का भी केंद्र बना हुआ है।
परमार ,पंवार ,काग ,भायल,होम्बर ,सिन्दरा गोत्र की कुल देवी श्री अधर देवी (अर्बुदा देवी ) के बारे में जानकारी :- राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन माउंटआबू माता अर्बुदा देवी के नाम पर है। दरअसल अर्बुदा का अपभ्रंश है आबू जिसके नाम पर माउंटआबू पर पड़ा। अर्बुद पर्वत पर अर्बुदा देवी का मंदिर है जो देश की 52 शक्तिपीठों में छठा शक्तिपीठ है। अर्बुदा देवी देवी दुर्गा के नौ रूपों में से कात्यायनी का रूप है जिसकी पूजा नवरात्र के छठे दिन होती है। समुद्र तल से साढ़े पांच हजार फीट ऊंचा अर्बुद पर्वत यानि अर्बुदांचल पर अर्बुदा देवी का मंदिर स्थित है। यह शक्तिपीठ देश की 52 शक्तिपीठों में से छठा है जहां भगवान शंकर के तांडव के समय माता पार्वती का अधर यही गिरा था।इसलिए इसे अधर देवी के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर साढ़े पांच हजार साल पुरानी है।माउंटआबू से 3 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है-अर्बुदा देवी मंदिर। अर्बुदा देवी,अधर देवी और अम्बिका देवी के नाम से प्रसिद्द है।यह मंदिर यहाँ के लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है । यह मंदिर एक प्राकृर्तिक गुफा में प्रतिष्ठित है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब भगवान शंकर ने पार्वती के शरीर के साथ तांडव शुरू किया था तो माता पार्वती के होठ यही गिरे थे। तभी से ये जगह अर्बुदा देवी (अर्बुदा मतलब होठ)यानी अधर देवी के नाम से प्रसिद्ध है।नवरात्र में नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। अर्बुदा देवी, देवी दुर्गा का छठा रुप है जिन्हें माता कात्यायनी के रूप में पूजा जाता है। अर्बुदा देवी यानि माता कात्यायनी की पूजा नवरात्र के छठे दिन होती है। माता अर्बुदा अर्बुदाचंल पर्वत पर स्थित है। अर्बुद पहाड़ को हिमालय पुत्र भी कहा गया है जो सर्प रुप में आबू पहाड़ को स्थित किए हुए है। नंदी गाय को बचाने के लिए भगवान शिव ने अपने अंगूठे से अर्बुद पर्वत को स्थिर किया था । अर्बुद का ही अपभ्रंश है आबू जिससे माउंटआबू नाम पड़ा।उल्लेखनीय है कि स्कंद पुराण में एक अर्बुद खंड भी है जिसमें अर्बुदांचल का पूरा जिक्र है।
देवड़ा, चोयल,सेबटा ,चौहान ,मुलेवा ,चावडिया ,सेवरिया गोत्र की कुलदेवी माँ आशापुरा की जानकारी :- नाडोल के तत्कालीन शासक परम प्रतापी महराज राव लाखणसी चौहान द्वारा स्थापित मां भवानी आशापुराजी का पवित्र पाट स्थान देवनगर नाडोल का भव्य तिर्थ स्थल है, यह स्थान मां अशापुराजी का भारत में मुख्य पाट स्थान है, नाडोल नगर से 1 किमी पर स्थित अत्यन्त सुन्दर और परम पवित्र है, कई विशाल पौराणिक मन्दिरों और ऐतिहासिक विशाल बावडियों और परकोटों कि धरोहरों को समेटे देवनगर नाडोल इन बडे बडे विशाल मन्दिरो के कारण अपनी विशेष पह्चान रखता है, मां आशापुराजी का भव्य मेला हर वर्ष चैत्र क्र अष्ठ्मी को भरता है,श्री राव लाखणशी चौहान का भव्य जन्मोत्सव भी प्रति वर्ष मनाया जाता है, मां भवानी श्रीआशापुरामाताजी भारत भर में बसे चौहान, भन्डारी इत्यादि कई गोत्रों कि कुलदेवी भी हैं ।
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