Thursday, 28 September 2017

सीरवी

समाज

समाज एक से अधिक लोगों के समुदाय को कहते हैं जिसमें सभी व्यक्ति मानवीय क्रियाकलाप करते है। मानवीय क्रियाकलाप में आचरण, सामाजिक सुरक्षा और निर्वाह आदि की क्रियाएं सम्मिलित होती है। समाज लोगों का ऐसा समूह होता है जो अपने अंदर के लोगों के मुकाबले अन्य समूहों से काफी कम मेलजोल रखता है। किसी समाज के अंतर्गत आने वाले व्यक्ति एक दूसरे के प्रति परस्पर स्नेह तथा सहृदयता का भाव रखते हैं। दुनिया के सभी समाज अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए अलग-अलग रस्मों-रिवाज़ों का पालन करते हैं।

सीरवी एक क्षत्रिय कृषक जाति है जो आज से लगभग 800 वर्ष पुर्व राजपूतों से अलग होकर राजस्थान के मारवाड़ और गौडवाड़ क्षेत्र में रह रही थी। कालान्तर में यह जाति मेवाड़, मालवा, निम्हाड़ व देश के अन्य क्षेत्र में फैल गए। वर्तमान में सीरवी समाज के लोग राजस्थान के अलावा मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरल, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, दमन दीव, पुडुचेरी आदि क्षेत्रों में बड़ी संख्या में रह रहे हैं।

सीरवी समाज के इतिहास का बहुत कम प्रमाण उपलब्ध है। इतिहास के जानकार मास्टर श्री शिवसिंहजी चोयल भावी ने अपने शोधों में इससे संबंधित कुछ तथ्य जुटाए हैं। उनके अनुसार जो खारड़िया राजपूतों का शासन जालोर पर था व राजा कान्हड़देव चौहान वंशीय थे उन्ही के वंश 24 गौत्रीय खारड़िया सीरवी कहलाये। मान्यता है कि सीरवी जाति का उद्गम भी वैदिक क्षत्रिय राजपूत जाति से ही हुआ है। इस जाति की जो 24 गौत्र (खापें) हैं वह क्षत्रिय राजपूतों से मिलती है। १० वीं सदी के आस-पास गुजरात प्रान्त में जूनागढ़ एवं राजकोट के बीच एक राज्य सम्भवतः गिरनार के राजा का अपने पड़ौस के किसी राजा से एक बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। इसमें हजारों सैनिक रण क्षेत्र में खेत रहे एवं अपार जान माल की क्षति हुई। जो क्षत्रिय बच गए थे, उन्होंने गुजरात को ही त्याग दिया एवं राजपूताना प्रान्त की ओर चल पड़े और जालोर राज्य, जो गुजरात की सीमा पर ही था, में आकर बस गये। उस समय जालोर पर चौहान वंषीय राजा कान्हड़देव सोनगरा का शासन था। ये 24 गोत्रिय राजपूत गुजरात प्रान्त के खारी-खाबड़ क्षेत्र से आये थे। अतः वे खारड़िया राजपूत कहलाये। इन्होंने कृषि को ही अपना मुख्य व्यवसाय बनाया था। इस कारण राजा कान्हड़देव ने इन लोगों को खेती व्यवसाय हेतु अपने राज्य में बसने की अनुमति प्रदान की और उनसे पैदावार का 9वां हिस्सा राजकोश में देने का ताम्बा-पत्र स्थायी लिखित आदेष जारी किया। इन 24 खापों के राजपूत ने जालौर के आस-पास 24 खेड़ो (गांवो) को बसाया। जो निम्न है-1.कूदणी खेड़ा 2. गोखर खेड़ा 3. बीठू खेड़ा 5. पादरला खेड़ा 6.कुरजडिया़ खेड़ा 7. थूंबड़िया खेड़ा 8. उसदड़ा खेड़ा 10. आकोर खेड़ा 11.नरवर खेड़ा 12. जेतपुरा खेड़ा 13.मण्डला खेड़ा 14. वीठला खेड़ा 15. जोगणी खेड़ा 16.लांबिया खेड़ा 17. हिंगोला खेड़ा 18.केरला खेड़ा 19. मानपुरा खेड़ा 20. नगवाली खेड़ा 21.लेटोंरा खेड़ा 22. बागोदरा खेड़ा 23. मूलोरा खेड़ा 24. :कुछ इतिहासकारों का इनसे भिन्न मत है। मुंषी देवी प्रसाद कृत मारवाड़ मर्दुमषुमारी रिपोर्ट सन् 1891 के अनुसार खारड़िया राजपूत जालोर के निवासी ही थे। खारी क्षेत्र में निवास करने के कारण ही इन्हें खारड़िया राजपूत कहा जाता था। इन्हीं खारड़िया राजपूतों का शासन जालोर पर था। राजा कान्हड़देव, जो चौहान वंषीय था, इन्ही में से था। ये 24जब विक्रम सम्वत् 1368 में अलाउद्दीन खिलजी ने जालोर पर आक्रमण किया तब खारड़िया राजपूत कान्हाड़देव बड़ी बहादूरी से लड़े। परन्तु बादशाह की सेना संख्या में कई गुना अधिक थी एवं अच्छे हथियारों से सुसज्जित थी, जबकि राजपूतों की संख्या कम एवं साधन सीमित थे। फिर भी उन्होंने काफी दिन तक बादशाह की सेना का बडी वीरता से सामना किया। लम्बे समय तक युद्ध चलते रहने के कारण जालोर के किले में रसद सामग्री खत्म होने लगी। बाहर से रसद सामग्री आने के सभी रास्ते बन्द थे। अतः वैशाख सुद 5 विक्रम संवत 1368 को खारड़िया राजपूतों ने साका किया। जो इतिहास में जालोर के साका के नाम से प्रसिद्ध है। राजपूत लोग लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए और जालोर के किले पर खिलजी का अधिकार हो गया। उन्होंने हिन्दू प्रजा से उपज के नौंवे भाग की बजाय जजिया के रूप में फसल का आधा हिस्सा वसूलना शुरू किया। अतः इससे दुखी होकर बचे हुए खारड़िया राजपूतों ने 600 बैलगाड़ियों में अपना सामान लादकर पाली व जोधपुर जिले की तरफ प्रस्थान किया और लूनी नदी के आस-पास के क्षेत्र में जहाँ सिंचाई के पानी की पर्याप्त सुविधा थी, वहाँ बस गये। ये। लोग यहाँ पर पूर्व में बसे जणवों के साथ सीर साझे में खेती करने के कारण सीरवी कहलाये। खारड़िया राजपूतों ने तलवार का मोह त्याग कर वर्षों से बंजर पड़ी भूमि को अपने हाथों से हल चलाकर उपजाऊ बनाया। फिर यही खेती इनका मुख्य व्यवसाय बन गया। जिस-जिस क्षेत्र में उपजाऊ जमीन व सिंचाईं की सुविधा उपलब्ध थी। वहां-वहां ये लोग बढ़ते एवं बसते गये। अपने परिश्रम लगन एवं ईमानदारी से इस व्यवसाय के प्रति समर्पित हो जाने के कारण किसान जाति के रूप में इनकी ख्याति हुई।

सीरवियों के गोत्र इस प्रकार हैं-

राठौड़
सोलंकी
गहलोत
पंवार
काग
बर्फा
देवड़ा
चोयल
भायल
सैणचा
आगलेचा
पड़ियार
हाम्बड़
सिन्दड़ा
चौहान
खण्डाला
सातपुरा
मोगरेचा
पड़ियारिया
लचेटा
भूंभाड़िया
चावड़िया
मुलेवा
सेपटा

             अधिकतर सीरवी आईमाता, जिनका मंदिर राजस्थान के बिलाड़ा कस्बा में हैं, के अनुयायी हैं। विक्रम संवत 1472 में गुजरात प्रदेष में अम्बापुर में बीकाजी डाबी के यहां अवतार धारण करने वाली जीजी अपने आई-पंथ का प्रचार करती हुई गोडवाड़ एवं मारवाड़ क्षेत्रों में आई। सीरवी जाति के अधिकांश लोग उनके अनुयायी बन गये। श्री आईजी ने उन्हें डोरा बंध बनाकर अपने आई-पंथ में दीक्षा दी। सीरवी समाज वालों ने श्री आईजी को अपनी ईश्ट देवी मान लिया। जब देवी वि.स. 1521 में बिलाड़ा पधारी एवं सीरवी जाणौजी राठौड़ के पौत्र एवं माधवदास के पुत्र गोयन्ददास को अपनी गादी का प्रथम दीवान नियुक्त कर अखण्ड-ज्योति की स्थापना की, उसी परम्परा का सीरवी लोग आज भी पालन कर रहे है और नित्य प्रति अखण्ड-ज्योति की पूजा करते हैं। इतना ही नहीं आई-पंथ का प्रचार करने के लिए उन्होंने धर्मरथ बनवाकर उसमें स्वयं विराजमान होकर गांव-गांव भ्रमण किया एवं जन-साधारण का अपनें सदुपदेशों सें उद्धार किया।

नरेन् सोलंकी
11, लक्समी  नगर
सरदार समन्द रोड
पालीमारवाड़
9209196789

Wednesday, 27 September 2017

सुन्दर कहानी

👉Nice  Story👈
गाँव में एक किसान रहता था जो दूध से दही और मक्खन बनाकर बेचने का काम करता था..

एक दिन बीवी ने उसे मक्खन तैयार करके दिया वो उसे बेचने के लिए अपने गाँव से शहर की तरफ रवाना हुवा..

वो मक्खन गोल पेढ़ो की शकल मे बना हुआ था और हर पेढ़े का वज़न एक kg था..

शहर मे किसान ने उस मक्खन को हमेशा की तरह एक दुकानदार को बेच दिया,और दुकानदार से चायपत्ती,चीनी,तेल और साबुन वगैरह खरीदकर वापस अपने गाँव को रवाना हो गया..

किसान के जाने के बाद -

.. .दुकानदार ने मक्खन को फ्रिज़र मे रखना शुरू किया.....उसे खयाल आया के क्यूँ ना एक पेढ़े का वज़न किया जाए, वज़न करने पर पेढ़ा सिर्फ 900 gm. का निकला, हैरत और निराशा से उसने सारे पेढ़े तोल डाले मगर किसान के लाए हुए सभी पेढ़े 900-900 gm.के ही निकले।
अगले हफ्ते फिर किसान हमेशा की तरह मक्खन लेकर जैसे ही दुकानदार की दहलीज़ पर चढ़ा..
दुकानदार ने किसान से चिल्लाते हुए कहा: दफा हो जा, किसी बे-ईमान और धोखेबाज़ शख्स से कारोबार करना.. पर मुझसे नही।
900 gm.मक्खन को पूरा एक kg.कहकर बेचने वाले शख्स की वो शक्ल भी देखना गवारा नही करता..
किसान ने बड़ी ही "विनम्रता" से दुकानदार से कहा "मेरे भाई मुझसे नाराज  ना हो हम तो गरीब और बेचारे लोग है,
हमारी माल तोलने के लिए बाट (वज़न) खरीदने की हैसियत कहाँ" आपसे जो एक किलो चीनी लेकर जाता हूँ उसी को तराज़ू के एक पलड़े मे रखकर दूसरे पलड़े मे उतने ही वज़न का मक्खन तोलकर ले आता हूँ।
👍👍👍👍👍👍👍👍👍
जो हम दुसरो को देंगे,
             वहीं लौट कर आयेगा...

      चाहे वो इज्जत, सम्मान हो,
                       या फिर धोखा...!!👌👌

*ऐसी बेहतरीन पोस्ट के लिए हमें Follow करे ❤*

गीता में लिखा हैं........

_*गीता में साफ़ शब्दो मे लिखा है..*_
_*निराश मत होना..*_
_*कमजोर तेरा वक्त है..*_
_*तू नही........*_
_*ये संसार "जरूरत" के नियम पर चलता है....*_
_*सर्दियो में जिस "सूरज"*_
_*का इंतजार होता है,*_
_*उसी "सूरज" का गर्मियों में*_
_*तिरस्कार भी होता है.....*_
_*आप की कीमत तब तक होगी जब तक आपकी जरुरत है...!*_
*"तालाब एक ही है..,*
*उसी तालाब मे हंस मोती चुनता है और बगुला मछली...!*
*सोच सोच का फर्क होता है...!*
*आपकी सोच ही आपको बड़ा बनाती है...!!*
*यदि हम गुलाब की तरह खिलना*
*चाहते हो तो  काँटों के साथ*
*तालमेल की कला सीखनी होगी*...
           
               🐾☀🐾

*🌹हँसते रहिये हंसाते रहिये🌹*
        *🌹सदा मुस्कुराते रहिये🌹*
                    *🐚☀🐚*

चाणक्य निति

चाणक्य नीति :9

भावनाएं इंसान को इंसान से जोड़ती हैं। दूर रहने वाला भी यदि हमारा प्रिय है तो वह हमेशा दिल के पास रहता है, जबकि पास रहने वाला भी हमारे दिल से कोसों दूर ही रहता है क्योंकि उसके लिए हमारे दिल में जगह नहीं होती।

💐🌴💐🌴💐🌴💐🌴💐
राजूराम राठौड़ बिलाड़ा

परिवार

"परिवार"

परिवार अब कहाँ ,परिवार तो कब के मर गए।
आज जो है,वह उसका केवल
टुकड़ा भर रह गए ।

पहले होता था दादा का ,
बेटों पोतों सहित,भरा पूरा परिवार,
एक ही छत के नीचे ।
एक ही चूल्हे पर ,
पलता था उनके मध्य ,
अगाध स्नेह और प्यार।

अब तो रिश्तों के आईने ,
तड़क कर हो गए हैं कच्चे,
केवल मैं और मेरे बच्चे।
माँ बाप भी नहीं रहे
परिवार का हिस्सा,
तो समझिये खत्म ही हो गया किस्सा।

होगा भी क्यों नहीं,
माँ बाप भी आर्थिक चकाचोंध में,
बेटों को घर से दूर
ठूंस देते हैं किसी होस्टल में,
पढ़ने के बहाने।
वंचित कर देते हैं प्रेम से
जाने अनजाने।

आज की शिक्षा
हुनर तो सिखाती है ।
पर संस्कार कहाँ दे पाती है।

पढ़ लिख कर बेटा डॉलर की
चकाचोंध में,
आस्ट्रेलिया, यूरोप या अमेरिका
बस जाता है।
बाप को कंधा देने भी कहाँ पहुंच पाता है।

बाकी बस जाते हैं बंगलोर ,
हैदराबाद, मुम्बई,
नोएडा या गुड़गांव में।
फिर लौट कर नहीं आते
माँ बाप की छांव में।

पिछले वर्ष का है किस्सा ,
ऐसा ही एक बेटा ,देकर घिस्सा
पुस्तैनी घर बेचकर ,
माँ के विश्वास को तोड़ गया ।
उसको यतीमों की तरह ,
दिल्ली के एयर पोर्ट पर छोड़ गया।

अभी अभी एक नालायक ने
माँ से बात नहीं की ,पूरे एक साल।
आया तो देखा माँ का आठ माह पुराना कंकाल ।
माँ से मिलने का तो केवल एक बहाना था ।
असली मकसद फ्लैट बेचकर खाना था।

आपसी प्रेम का खत्म होने को है पेटा ।
लड़ रहे हैं बाप और बेटा ।
करोड़पति सिंघानियां को लाले पड़
गये हैं खाने के ।
बेटे ने घर से निकाल दिया ,
चक्कर काट रहा है कोर्ट कचहरी थाने के।

परिवार को तोड़ने में अब तो
कानून ने भी बो दिए  हैं बीज ।
जायज है लिवइन रिलेशनशिप
और कॉन्ट्रैक्ट मैरिज ।

ना मुर्गी ना अंडा ना सास ससुर का फंडा ।
जब पति पत्नी ही नहीं तो परिवार कहाँ से  बसते ।
कॉन्ट्रैक्ट खत्म ,चल दिये
अपने अपने रस्ते ।
इस दौरान जो बच्चे हुए,
पलते हैं यतीमों की तरह ।
पीते हैं तिरस्कार का जहर ।

अर्थ की भागम भाग में
मीलों पीछे छूट गए हैं ,
रिश्ते नातेदार ।
टूट रहे हैं घर परिवार ।
सूख रहा है प्रेम और प्यार ।
परिवारों का इस पीढ़ी ने ऐसा सत्यानाश किया कि ,
आने वाली पीढ़ियां सिर्फ किताबों में पढ़ेंगी ----
"वन्स अपॉन अ टाइम ,
    देयर वाज लिवींग
जोइंट फैमिली इन इंडिया•
    दैट इज कॉल्ड परिवार"

         ......✍🙏🏻🌺❤🌹

नवरात्री

आप सभी को शारदीय नव रात्र की शुभकामनाएं
🌺..नौ दुर्गा का मतलब नौ वर्ष की कन्या की पूजा करना होता है. कन्या पूजन दो वर्ष की कन्या से शुरू किया जाता हैl.🌺

🌺..2 वर्ष की कन्या को ' कुमारिका ' कहते हैं और इनके पूजन से धन , आयु , बल की वृद्धि होती है l
🌺..3 वर्ष की कन्या को ' त्रिमूर्ति ' कहते हैं और इनके पूजन से घर में सुख समृद्धि आती है l
🌺..4 वर्ष की कन्या को ' कल्याणी ' कहते हैं और इनके पूजन से सुख तथा लाभ मिलते हैं l
🌺..5 वर्ष की कन्या को ' रोहिणी ' कहते हैं इनके पूजन से स्वास्थ्य लाभ मिलता है l
🌺..6 वर्ष की कन्या को ' कालिका ' कहते हैं इनके पूजन से शत्रुओं का नाश होता है l
🌺..7 वर्ष की कन्या को ' चण्डिका ' कहते हैं इनके पूजन से संपन्नता ऐश्वर्य मिलता है l
🌺..8 वर्ष की कन्या को ' साम्भवी ' कहते हैं इनके पूजन से दुःख-दरिद्रता का नाश होता है l
🌺..9 वर्ष की कन्या को ' दुर्गा ' कहते हैं इनके पूजन से कठिन कार्यों की सिद्धि होती है l
🌺..10 वर्ष की कन्या को ' सुभद्रा ' कहते हैं इनके पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है l

🌺.नवरात्री की आप सभी को सपरिवार शुभकामनाए  l🌺

प्रणाम का महत्व

🙏 *प्रणाम का महत्व* 🙏
💎💎💎💎💎💎💎💎💎💎
महाभारत का युद्ध चल रहा था -
एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर "भीष्म पितामह" घोषणा कर देते हैं कि -

"मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा"

उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई -

भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए|

तब -

श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो -

श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए -

शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि - अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो -

द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने -
"अखंड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दे दिया , फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि !!

"वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्री कृष्ण यहाँ लेकर आये है" ?

तब द्रोपदी ने कहा कि -

"हां और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं" तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया -

भीष्म ने कहा -

"मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते है"

शिविर से वापस लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि -

*"तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है "* -

*" अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती "* -
......तात्पर्य्......

वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि -

*"जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है "*

*" यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो "*

बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई "अस्त्र-शस्त्र" नहीं भेद सकता -

"निवेदन 🙏 सभी इस संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो घर स्वर्ग बन जाय।"

*क्योंकि*:-

*प्रणाम प्रेम है।*
*प्रणाम अनुशासन है।*
प्रणाम शीतलता है।             
प्रणाम आदर सिखाता है।
*प्रणाम से सुविचार आते है।*
प्रणाम झुकना सिखाता है।
प्रणाम क्रोध मिटाता है।
प्रणाम आँसू धो देता है।
*प्रणाम अहंकार मिटाता है।*
*प्रणाम हमारी संस्कृति है।*

        🙏🙏🙏
   
🙏 सादर प्रणाम 🙏

Thursday, 21 September 2017

टूटते रिश्ते बिखरते परिवार

|| बिखरते परिवार ||

[ नीचे लिखे गए विचारों को इस उद्देश्य के साथ लिखा जा रहा है कि आज के बिखरते परिवारों, टूटते रिश्तों और पारिवारिक समस्याओ की मूल जड़ को समझा जा सके और इस आधार पर हम अपने परिवारों को पुन: स्थापित कर सके और विश्व के लिए एक आदर्श स्थापित कर सके जेसा हमने प्राचीन काल में किया था । इस लेख के पाठकों से अनुरोध है कि लेख में दिए गए विचारों को हर जगह फैला दे, ऐसा तभी हो सकता है जब आप लेख को 'लाइक' के साथ साथ 'शेयर' भी करे । ]

एक परिवार कुछ व्यक्तियों के एक साथ रहने से बनता है जिसमे वे एक दूसरे के साथ कुछ रिश्तों से जुड़े होते हैं जेसे अभिभावक, बेटा-बेटी, भाई-बहन और माता-पिता । ये रिश्ते एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सम्मान, सहनशीलता, शिष्टता, विश्वास, ईमानदारी, साहस और अनुशासन जेसे मानवीय गुणों से बंधे रहते हैं और एक मजबूत, सुखी परिवार कि रचना करते हैं | जब पिता अपने बेटे से गुस्से में कुछ कहता है तो बेटे की सहनशीलता और शिष्टता बेटे को पिता की डांट चुपचाप बिना विरोध किये सुनने को प्रेरित करती है । पत्नी, बेटा और बेटी सब पिता को मुखिया मान के उसका सम्मान करते हैं और  उसके अनुशासन में रहते हैं | इसी तरेह पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और ईमानदारी दोनों को एक दूसरे का अंग बना देते हैं और जीवन भर का अटूट रिश्ता बन जाता है । पति और पत्नी यदि कुछ दिनों के लिए अलग हो जाये तो उन्हें केसा लगता है यह वही बता सकते हैं जिनके ऊपर ये बीतती है । जब परिवार पर कोई आर्थिक या शारीरिक संकट आता है तो किस तरेह माता पिता का साहस काम आता है ये हम सभी जानते हैं । तो प्रेम, सम्मान, सहनशीलता, शिष्टता, विश्वास, ईमानदारी, साहस और अनुशासन ये मानवीय गुण किस तरेह एक अटूट परिवार की रचना करते हैं ये हमने इन लाइनों से जाना । हाल ही मैं पिता बना हूँ ये एक ऐसा अनुभव था जिसे पिता बनने से पहले मैंने कभी अनुभव नहीं किया था । जब मैंने अपनी फार्मेसी की डिग्री के लिए पहली बार घर से बाहर कदम रखा था तो बड़ा उत्साहित था बाहर रहने और तकनीकी शिक्षा ग्रहन करने के लिए तो इस खुसी से मुझे अपने माता पिता से दूर जाते हुए ज्यादा दुःख नहीं हुआ लेकिन मैं ये भूल गया था की मेरे माता पिता के साथ शायद ऐसा नहीं था । उन्होंने २२ साल तक अपने बेटे को कभी अपनी आँखों के सामने से दूर नहीं होने दिया था और अब बेटा शायद हमेशा के लिए दूर हो रहा था .....ये एक ऐसा अनुभव था जिसे आज मैं ये लाइन लिखते हुए अनुभव कर रहा हूँ और इसी कारन आज मेरी आँखे भी नम हैं । मित्रो अपने बेटा-बेटी से दूर रहना क्या होता है ये वो कभी नहीं समझ सकते जो अभी माता पिता नहीं बने हैं । मेरे बाहर रहने के बाद शायद ही कभी मेरे माता पिता ने मुझे ये जताया हो कि वो मेरे जाने के बाद कितने दुखी थे और अपने कलेजे पे पत्थर रख के अपने दिन अकेले काट रहे थे । इस बात का अनुभव मुझे  २००९ की जन्मास्टमी को हुआ जब मेरी माँ ने मुझे फ़ोन किया और बात करते करते फ़ोन पे बस ये बोला कि "आज घर में बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा ......तुम होते तो आज घर का मंदिर सजा रहे होते...." फिर उनका गला भारी हो गया और कुछ बोल नहीं पा रही थी । मेरी माँ रो रही थी । मेरी आँखों से भी आंसू निकलने लगे और मेरी माँ ने फ़ोन रख दिया । ये अनुभव मेरे लिए नया था पर मेरे माता पिता के लिए उतना ही पुराना था जब से मैं घर से बाहर निकला था । उनका हर दिन मेरी याद में निकलता था और न जाने कितने बार उनकी आँखों से आंसू निकलते होंगे ।  मित्रों मैंने अपनी याद में शायद ही कभी अपने माता पिता को दुःख दिया हो । एक माता पिता का सपना होता है कि वो अपने बेटे की शादी अपनी पसंद से करे मैंने उनकी इस इच्छा को बहुत पहले ही समझ लिया था और उनकी पसंद से ही शादी की और हम पति पत्नी के बीच प्यार और मेरे माता पिता का अपनी बहू के लिए प्यार इतना ज्यादा है कि मेरी पत्नी को अपने माता पिता और मेरे से दूर रहने पर भी ज्यादा परेशानी नहीं होती । आज की पड़ी लिखी पीड़ी में ज्यादातर हम अपनी पसंद से शादी करते हैं और इस बात का बिलकुल ध्यान नहीं रखते कि हमारे माता पिता की क्या इच्छा थी ? हम जवानी के जोश को प्यार कहते हैं और जो माता पिता सच्चे प्रेम का जीता जागता उदाहरण हैं उनका विरोध कर के उनको मजबूर कर देते हैं और अगर वो नहीं मानते हैं तो उनको धमकी देते है खुद के मर जाने की .....मित्रो हम क्या मरेगे? हम तो अपने माता पिता को जीते जी मारते हैं |
आज प्यार का नाम अपने जेहन में आते ही दो युवा विपरीत लिंगो को एक दूसरे के प्रति शारीरिक आकर्षण और कभी कभी भावनात्मक बंधन में बंधा हुआ पाते हैं । लेकिन हमने ये कैसे मान लिया कि प्रेम जैसा मानवीय और दैवीय गुण केवल युवा विपरीत लिंगो के बीच की कहानी भर है? इसका उत्तर आज से २० साल पहले हिंदी फिल्मो से मिलेगा जिसने आज के युवाओ की सोच और जीवन शैली बद्द से बद्दतर बना दी है । हिंदी फिल्मो ने हमें २० साल पहले धीरे धीरे सेक्स परोसना सुरु किया लेकिन ये सेक्स खुले रूप से सामने नहीं था, ये प्रेम की चादर ओड के युवाओं और युवतियों के स्वाभाविक आकर्षण को उकसाने के काम कर रहा था । आज २० साल बाद प्रेम की चादर हट चुकी है और हिंदी फिल्मे खुले रूप में नग्नता परोस रही है ।आज प्यार और सेक्स में ज्यादा अंतर नहीं रहा है ।
मित्रो आज हमें अपने परिवारों में फिर से शुख शांति लानी है तो आज हमें अपने विवेक को काम में लाना पड़ेगा और वास्तविकता को समझ के फिर से अपनी जीवन शैली और विचारो को बदलना होगा । आज हमारे जीवन की कहानी हिंदी फिल्मो के हाथ में हैं, आज हमारी पसंद नापसंद फिल्मो, नाटकों और ऐड पर दिखाए जा रहे कार्यक्रमों पे निर्भर कर रही है । जरा सोचिये यदि आपको १ साल तक पूरे परिवार के साथ रहने दिया जाये और फिल्मो, नाटकों और ऐड से बिलकुल दूर कर दिया जाये तो क्या होगा ? मैं बताता हूँ क्या होगा-  आपका मनोरंजन अब माता, पिता, भाई, बहन के साथ बातें करते हुए और घर के काम करते हुए बीतेगा और ये मनोविज्ञान बताता है कि जिसके साथ ज्यादा समय बिताया जाता है उसके साथ स्वाभाविक लगाव और प्रेम उत्पन्न हो जाता है और वही हमारा व्यवहार बन जाता है । और इस तरेह जब हम १ साल अपने परिवार के साथ बिना फिल्मो, नाटकों और ऐड देखे हुए (जैसे हम ३० साल पहले बिताते थे ) बितायेगे तो आप एक ऐसे भावनाशील, जिम्मेदार और सबसे प्रेम करने वाले (न कि केवल युवतियों से ) व्यक्ति बन के समाज के सामने आयेगे जो एक खुशहाल और सुखी परिवार कि नीव रखेगा । ऐसा व्यक्ति अब न तो किसी फिल्मो से बदल सकता है और न ही किसी ऐड से, उसकी सोच उसके स्वाभाविक गुण 'विवेक' पर निर्भर करेगी । ऐसे व्यक्ति को हर कोई अपनाना चाहेगा और वो भी अपने से जुड़े हर परिजन को अपने स्वाभाव "प्रेम" से मन्त्र-मुग्ध कर सकता है।
मित्रो यहाँ बताये हुए उपाय का ये मतलब नहीं है कि आप एक साल तक फिल्मे, नाटक और ऐड न देखे । यहाँ लिखी हुई लाइनों का उद्देश्य यही है कि आप अपने जिन्दगी और सोच प्राकृतिक रखे और फिल्मे, नाटक और ऐड को अपने ऊपर हावी न होने दे । आपकी जीवन शैली, खान पान, पहनना ओढना, रीति रिवाज- फिल्मे, नाटक और ऐड पर निर्भर नहीं होना चाहिए बल्कि ये हमारी वास्तविक जरूरत और परिवार के माहोल पर निर्भर करनी चाहिए तभी हम एक अटूट परिवार कि रचना कर पाएगे ।
मित्रो आज हमें अपने माता पिता और परिवार पे ध्यान देने की जरूरत है ना कि फिल्मो की बनावटी जिन्दगी पे जो साधारण सी कमाई वाले को हाई फाई बनावटी जिन्दगी जीने के लिए मजबूर करती है और शादीसुदा को कही दूसरी जगह मूह मरने के लिए प्रेरित करती है और परिवारों में अशांति पैदा करती है । मित्रो कहने और लिखने के लिए बहुत कुछ है लेकिन आज मैं अपने इन विचारों को यही विराम देना चाहूँगा और आप से अपेक्षा रखूँगा कि शायद मेरा ये प्रयत्न आपके परिवार को और ज्यादा सुखी और आदर्श परिवार का रूप दे सके ।

लेखक
नरेन् सोलंकी
Nkc243@gmai.com
8529488564