Saturday, 7 October 2017

सोशल मीडिया का समाज में दखल

सोशल मीडिया इंटरनेट के माध्यम से एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे उपयोग करने वाला व्यक्ति सोशल मीडिया के किसी प्लेटफॉर्म (फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम) आदि का उपयोग कर पहुंच बना सकता है।
मौजूदा समय में इंटरनेट की दुनिया में पैठ बना चुका हर व्यक्ति आज किसी न किसी सोशल नेटवर्किंग साइट से जुड़ा है। इसमें कोई संशय नहीं है सोशल मीडिया का मंच आज अभिव्यक्ति का नया और कारगर माध्यम बन चुका है। इससे जुड़े लोग बेबाकी से अपनी राय इस मंच के माध्‍यम से जाहिर करते हैं। हालांकि, सोशल मीडिया के प्रति बढ़ती दीवानगी जहां कई मायनों में सार्थक नजर आती है, वहीं इसके दुरुपयोग के मामले में भी सामने आते रहते हैं। 

सोशल नेटवर्किंग साइट एक ऐसा प्‍लेटफार्म है जिसके द्वारा कोई भी व्‍यक्‍ित अपने विचारों को दूसरे व्‍यक्तियों के साथ साझा कर सकता है। फेसबुक और ट्विटर अन्‍य व्‍यक्तियों को हमारे दोस्‍तों को देखने की सुविधा देता है। सोशल मीडिया से हर वक्त चिपके रहने वाले लोगों को आजकल कहीं भी बड़े आराम से देखा जा सकता है। हममे से भी कई लोग ऐसा करते हैं, लेकिन कहीं आपकी इस आदत ने लत का रूप तो नहीं ले लिया है !

फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स और विभिन्‍न ऐप्‍लीकेशन आज लोगों की जिंदगी का हिस्‍सा बन गए हैं। यदि इन सभी से आदमी थोड़ी देर के लिए भी दूर होता है तो वह बेचैन हो जाता है। शुरूआत में सोशल मीडिया यानी न्‍यू मीडिया का मकसद लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने के साथ ही संचार माध्यम को मजबूती देना था। अपने इस मकसद में सोशल मीडिया को सफलता भी मिली। लेकिन साथ ही इसने सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित किया है। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, दूसरे पहलू के रूप में सोशल मीडिया ने लोगों के संबंधों में दखल किया है।

पहले इन साइट्स का इस्तेमाल पुराने स्कूल के दोस्तों को खोजने और परदेश में रह रहे रिश्तेदारों से संपर्क बनाने के लिये किया जाता था। हाल के वर्षों में इन्होंने हमारे करीबी संबंधों के सभी पहलुओं को घेर लिया है, विशेष रूप से हमारे जीवन और संबंधों को। फेसबुक और ट्विटर लोगों को उनके दोस्तों व रिश्‍तेदारों की पसंद-नापसंद और सामाजिक दायरे से जोड़ता है। इस पूरे कार्यक्रम में कोई प्रत्यक्ष वार्तालाप या मुलाकात शामिल नहीं होती है। फेसबुक पर किसी के बारे में लोग राय उसके द्वारा साझा की गई पोस्ट और टिप्‍पणियों के आधार पर करते हैं।

सोशल नेटवर्किंग साइट अधिकांश लोगों के जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं। शुरूआत में इस तरह की वेबसाइटों ने आपसी संबंधों को मजबूती दी, लेकिन अब आकर यह रिश्‍तों में समस्‍या पैदा करने का भी कारण बन गई हैं। इसलिए लॉगइन करने से पहले और अपनी निजी जिंदगी को दुनिया के साथ साझा करने से पहले एक बार अपने साथी से बात कर लें। सोशल नेटवर्किंग किसी रिश्ते में असंतोष का कारण बन सकती है। जब आपका साथी आपसे ज्यादा सोशल नेटवर्किंग साइट पर समय बिताता है तो आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचती है। ऐसे में इसका दुष्‍प्रभाव यह होता है कि व्‍यक्ति खुद को उपेक्षित महसूस करने लगता है।

युवा सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग ना सिर्फ दोस्त बनाने के लिए बल्कि गर्ल-फ्रेंड और ब्वॉय फ्रेंड ढूंढने के लिए भी खूब कर रहे हैं। इतना ही नहीं सोशल नेटवर्किंग आज के जमाने में मैरिज काउंसलर तक की भूमिका में आ गया है। इसके साथ ही यह दो लोगों के आपसी रिश्‍तों में खटास पैदा करने का कारण भी बन रहा है। फेक प्रोफाइल इसका एक उदाहरण है। कम उम्र के लड़के और लड़कियों की आदत होती है कि उत्साह में प्रोफाइल पर अपनी सभी जानकारी साझा कर देते हैं। प्रोफाइल पर अपना फोन नंबर, घर का पता या फिर कोई भी प्राइवेट इनफार्मेशन शेयर करने से कई बार समस्या आ जाती है। ऑन लाइन होने पर कुछ लोग खुद को जैसा प्रदर्शित करते हैं वे वास्तविक जीवन में वैसे नहीं होते। बाद में हकीकत जानने पर रिश्ते में दरार आने लगती हैं।

किशोरों पर अपने दोस्‍तों द्वारा पर शेयर की गई तस्‍वीरों का असर पड़ता है। नए अध्‍ययन से यह बात साफ हुई है कि फेसबुक और ट्विटर आदि सोशल साइट्स पर तस्‍वीरों में दोस्‍तों को सिगरेट और शराब पीते हुए देखकर किशोर इससे दूर नहीं रह पाते।

सोशल मीडिया ने पहचान की चोरी, विवरण की चोरी, साइबर धोखाधड़ी, हैकिंग और वायरस के हमलों की संभावना को बढ़ावा दिया है। यदि आप ने अपना पता, फोन नंबर, कार्यस्थल और अपने परिवार की जानकारी किसी भी सोशल मीडिया की साइट पर अपडेट किया है, तो आपने अपनी गोपनीयता को खो दिया है। आमतौर पर हम फेसबुक पर दिन-प्रतिदिन की नई-नई तस्वीरें डालते रहते हैं। ऐसा करते समय बहुत सतर्क रहना चाहिये, क्योंकि चित्र और अन्य जानकारियों का समाज में बुरे तत्वों द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है।

सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव

* यह बहुत सारी जानकारी प्रदान करता है जिनमें से बहुत सी जानकारी भ्रामक भी होती है।

* जानकारी को किसी भी प्रकार से तोड़-मरोड़कर पेश किया जा सकता है।

* किसी भी जानकारी का स्वरूप बदलकर वह उकसावे वाली बनाई जा सकती है जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता।

* यहां कंटेंट का कोई मालिक न होने से मूल स्रोत का अभाव होना।

* प्राइवेसी पूर्णत: भंग हो जाती है।

* फोटो या वीडियो की एडिटिंग करके भ्रम फैला सकते हैं जिनके व्दारा कभी-कभी दंगे जैसी आशंका भी उत्पन्न हो जाती है।

* सायबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है।

सोशल मीडिया आभासी दुनिया का नेटवर्क है यह असल जीवन या जिंदगी के नेटवर्क का विकल्प नहीं हैं इसको भी हमें समझना पड़ेगा। इस नए मीडिया ने संवादहीनता खत्म तो की हैं लेकिन असल जिंदगी के रिश्तो जिसमें आपके दोस्त, आपके पडोसी,आपके रिश्तेदार जो जरूरत पड़ने पर आपके काम आते थे को भी कहीं ना कहीं आपसे दूर भी किया हैं। अब आप उन्हें उतना समय नहीं दे पाते जितना आप पहले दे पाते थे।

नकारात्मक एवं सकारात्मक सोच के लोग इसी समाज में रहते हैं सोशल मीडिया का इस्तेमाल किस सोच के साथ एवं कैसे किया जाये समाज में यह हमें ही तय करना है इतना जरूर है कि हम सबको थोड़ी सावधानियाँ जरूर बरतनी होगी सोशल मीडिया को इस्तेमाल करते वक़्त।

इसलिए सोशल मीडिया की कार्यपद्धति और इसके इस्तेमाल करने के तरीके को समझना जरूरी है। सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग भारी मुसीबत ला सकता है। इसे रोकने के लिए आपको फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया पर अपना समय सीमित करना होगा। आराम करने और बाहर जाने के लिए समय निकालें। इंटरनेट केवल सोशल मीडिया के उपयोग लिए ही नहीं है। यह सूचना का एक भंडार गृह है, इसलिए इसका उपयोग बुद्धिमानी से करें।

Thursday, 5 October 2017

वाह री ज़िन्दगी

.
             *वाह री जिन्दगी*
               """"""""""""""""""""
*जीवन की आधी उम्र तक पैसा कमाया,*
*पैसा कमाने मे इस शरीर को खराब किया।*
*बाकी आधी उम्र तक उसी पैसे को,*
*शरीर ठीक करने मे लगाया।*
*न शरीर बचा, न पैसा ।*

            *वाह री जिन्दगी*
          *"""""""""""""""""""""*
*श्मशान के बाहर लिखा था!*
*मंजिल तो तेरी यही थी!*
*बस ज़िन्दगी गुजर गई आते आते*
*क्या मिला तुझे इस दुनिया से*
*अपनों ने ही जला दिया तुंझे जाते जाते*...

    *_़़़़़वाह री जिंदगी़़़़़़_*
            *""""""""""""""""""*
*दौलत की भूख एेसी लगी कि कमाने निकल गए!*
*जब दौलत मिली तो हाथ से रिश्ते निकल गए!*
*बच्चों के साथ रहने की फुरसत ना मिल सकी!*
*फुरसत मिली तो बच्चे कमाने निकल गए!*

     *_़़़़़वाह री जिंदगी़़़़़़_*

             *""""""""""""""""""*

,.........................................................................

🍃🌾🌴🌸🌿🌷💐
  *"आशाएं ऐसी हो जो-*
              *मंज़िल  तक ले जाएँ,*
  *"मंज़िल  ऐसी हो जो-*
           *जीवन जीना सीखा दे..!*
*जीवन ऐसा हो जो-*
               *संबंधों की कदर करे,*
*"और संबंध ऐसे हो जो-*
      *याद करने को मजबूर कर दे"*
*"दुनियां के रैन बसेरे में..*
   *पता नही कितने दिन रहना है,*
       *"जीत लो सबके दिलों को..*
  *बस यही जीवन का गहना हे*

                  🌷😀 😀🌷

62 वीं जिला स्तरीय प्रतियोगिता

रानी । जवाली आईजी बालिका विद्यापीठ उच्च माध्यमिक विद्यालय प्रांगण में 62 वीं जिला स्तरीय 17 व 19 वर्षीय छात्रा  एथलेटिक्स प्रतियोगिता का शुभारंभ मुख्य अतिथि मारवाड़ विधायक केसाराम चौधरी, केंद्रीय राज्य मंत्री पीपी चौधरी की धर्मपत्नी वीणा प्राणी चौधरी व जिला खेल अधिकारी अगराराम चौधरी विशिष्ट अतिथि पुनाराम चोयल की अध्यक्षता में किया गया| कार्यक्रम का आगाज सरस्वती माता के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया गया| वही बालिकाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम की रंगारंग प्रस्तुति देकर सभी का मन मोह लिया| इस प्रतियोगिता में पाली जिले की 43 टीमों ने भाग लिया| सर्वप्रथम प्रतियोगिता में छात्रा खिलाड़ियों ने खेल को खेल की भावना से खेलने की शपथ ली| इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता वीणा प्राणी चौधरी ने कहा कि खेल को खेल की भावना से खेलना चाहिए तथा खेलने से बालिकाओं का मनोबल बढ़ता है ,और खेल में हार जीत होती रहती है इसलिए हारने पर निराश नहीं होना चाहिए| तथा प्रधानाचार्य  जगदीशचंद्र जोशी ने कहा कि खेल हमारे जीवन का अभिन्न अंग है इसलिए छात्राओं को खेलने में रूचि रखनी चाहिए| वही प्रात: कालीन 5 हजार मीटर वाक्  प्रतियोगिता में सोनाई लाखा प्रथम, आईजी विद्यापीठ द्वितीय, नोवी तृतीय स्थान टीमे रही|

यह रहे मौजूद    

प्रधानाचार्य जगदीशचंद्र जोशी, अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी केके राजपुरोहित, आईजी विधापीठ जवाली अध्यक्ष मोडाराम सोलकी,शिक्षा समिति अध्यक्ष पोमाराम परिहार, सांसद निजी सचिव डी आर चौधरी, व्यवस्थापक दिनेश कुमार चौधरी, उप कोषाध्यक्ष घीसाराम चौधरी, निर्णायक कमला भाटिया, सह सचिव हीराराम गहलोत, उपाध्यक्ष दानाराम राठौड़, रूपाराम चौधरी, उप सरपंच यशवंतसिंह राठौड़, गमनाराम चौधरी, नैनाराम काग, खौड मंडल अध्यक्ष मुकेश सीरवी, देवाराम चौधरी, रुपाराम परमार, हरिकृष्ण चौधरी सहित बड़ी संख्या में छात्राएं तथा विद्यालय स्टाफ मौजूद रहा http://www.sssbharat.com/2017/10/62.html

*Excellent Words *

*.     Excellent Words by*
      *Swami Vivekanand*
       *A Man is not Poor*    
        *Without a Rupee*...
                    *But*
     *A Man is Really Poor*   
        *Without a Dream*
                       *&*
                *Ambition*

चिकित्सा विभाग राजस्थान पर एक दृस्टि

चिकित्सा विभाग राजस्थान पर एक दृष्टि :
एक सटीक से विश्लेषण का प्रयास है यदि कोई ग़ुस्ताखी हो तो माफ़ करना 😊

विभाग में समीक्षा करने वालो की सूची -
माननीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री
माननीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य राज्य मंत्री
माननीय जिला प्रभारी मंत्री
माननीय संसदीय सचिव
अन्य माननीय बोर्ड अध्यक्ष
माननीय बीसूका उपाध्यक्ष
श्रीमान एसीएस
श्रीमान जिला प्रभारी सचिव
आदरणीया प्रमुख शासन सचिव
श्रीमान मिशन निदेशक
श्रीमान अतिरिक्त मिशन निदेशक
श्रीमान निदेशक -४
श्रीमान अतिरिक्त निदेशक -५
श्रीमान संयुक्त निदेशक (निदेशालय)-१०
एनएचएम के विभिन्न कार्यक्रमों के नोडल अधिकारी -२० से ज़्यादा
सर्व श्रीमान
संभागिय आयुक्त
अतिरिक्त संभागिय आयुक्त
संयुक्त निदेशक जोन
सांसद
विधायक
ज़िला प्रमुख
प्रधान
कलेक्टर
एडीएम
मुख्य कार्यकारी अधिकारी
अति.मुख्य कार्यपालक अधिकारी
एसडीएम
तहसीलदार
विकास अधिकारी
आदि

पूरा सप्ताह, पूरे माह, प्रति दिन मीटिंग, VC,जनसुनवाईऔर समीक्षा

प्रत्येक समीक्षक अधिकारी का अपना एजेंडा 😂

काम न तो कुछ किया जाता है ,न करने दिया जाता है समय ही नही देते काम करने का पर्याप्त ।🙄 जो समय बचता है, शिकायतों की भेंट चढ़ जाता है।😒
योजनाऐं :-अनेक
प्रपत्र:-अनेक
अभियान :- लगातार
जानकारी बनाने वाला :-  वही एक चिकित्सक !!😒
जिस से आम अवाम की अपेक्षा पूर्ण करने का वक़्त यह समीक्षक अधिकारी देते ही नहीं तो केसे दे सेवा ?😡

यहाँ तनाव:-अनेक
न परिवार न इच्छाएं
काम :-दिन रात कोई सीमा नहीं
केवल :- प्रपत्र ,जानकारी, समीक्षा!

और इन सब का प्रतिफल=विकास="0"[जीरो ]
कैसी सेवा - कैसा प्रबंधन ......
*काम करने वाले 1% भी नही, समीक्षा करने वाले 99%*
क्योंकि पूरा माह केवल जानकारी ओर मीटींग और समीक्षा मे बीत गया किसी को कुछ करने ही नही दिया गया।
यह है वर्तमान स्वास्थ्य प्रबंधन का विभत्स रूप ।

शिकायतें:-
सीएम हेल्प लाईन
कलेक्टर सतर्कता
कलेक्टर लोक शिकायत
जनसुनवाई
रात्रि चौपाल
लोकायुक्त
विभिन्न आयोग

कर्मचारियों की संख्या सीमित, वर्षो से पद रिक्त, संविदा नियुक्ति, वेतन कम, समय सीमित  अभी ये करो अभी वो करो बस करते रहो,
मेनेजमेंट असंतुलित इत्यादि अनेक समस्याऐं ।

निष्कर्ष:- जिस विभाग मे केवल ओर केवल समीक्षा करने वालों की संख्या काम करने वालों.. की संख्या से ज्यादा हो जाये वहां स्वास्थ्य प्रबंधन और मरीज़ों को गुणवत्ता पूर्ण चिकित्सा सेवा मिल पाना एक "दिव्य-स्वप्न" है।
यह हाल हैं हमारे राज्य राजस्थान के स्वास्थ्य प्रबंधन का। 😒
कोई ना ..फिर भी एक निवेदन राज्य के नीतिनिर्धारक रहनुमावो से एक "दिन और रात"(24 घण्टे लगातार ) तो गुज़ारो राज्य के ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत सेवारत चिकित्सक के साथ 😡
🔥🔥👍🔥🔥
जागो !!!
आम अवाम से अपील !!!
अगर राज्य का स्वास्थ्य प्रबंधन सुधारना है और आम आदमी तक राज्य की स्वास्थ्य सेवा को ले कर जाना है तो सेवारत चिकित्सकों की इस पहल को अमली जामा पहनाना ही होगा !!!
पहली बार सेवारत चिकित्सकों ने अपने अनुभव के आधार पर राज्य का स्वास्थ्य प्रबंधन सुधारने के लिए पहल की है !!...... पर अफ़सोस यह कैसी व्यवस्था है.. शासन को यह आवाज क्यूँ नहीं सुन रही !!
शासन के सिपलहार ही रास्ता रोक रहे है स्वास्थ्य प्रबंधन का !!!.....खैर कब तक होगा ऐसा ??...नहीं चलेगा ज़्यादा दिन यह गेम !!😡....काम कोई करता है और इनाम कोई पाता है !!!!😂
(😝रामचंद्र कह गये सिया से ऐसा कलयुग आएगा हंस चुगेगा दाना तिनका, कौवा मोती खाएगा 😂😂😂😂😂)
जागो आम अवाम !!!
पीड़ित को सेवा देने के लिए तो तत्पर है हम ,पर इसके लिए समय एवम साथ तो दो .....🙏

राजस्थान राज्य को स्वास्थ्य मानकों की दृष्टि से बीमारु राज्य की श्रेणी से बाहर निकाल कर " पहला सुख निरोगी काया " के संदेश को अमली जामा पहनाने के लिए...अब आम अवाम का साथ चाहिए  !!!🙏🙏
🙏
जय अरिसदा
🔥🔥🔥🔥🔥

डॉ अजय चौधरी
अध्यक्ष अरिसदा
राजस्थान
🙏🙏🙏🙏

हिसाब क्या करे !!

जिंदगी ने दिया है जब इतना  बेशुमार यहाँ
तो फिर जो नहीं मिला उसका हिसाब क्या रखें !!

खुशी के दो पल काफी है खिलने के लिये
तो फिर उदासियों का हिसाब क्या रखें !!

हसीन यादों के मंजर इतने हैं जिन्दगानी में
तो चंद दुख की बातों का हिसाब क्या रखें !!

मिले हैं फूल यहाँ इतने किन्हीं अपनों से
फिर काटों की चुभने का हिसाब क्या रखें !!

चाँद की चाँदनी  जब इतनी दिलकश है
तो उसमें भी दाग है ये हिसाब क्या रखें !!

कुछ तो जरुर बहुत अच्छा है सभी में यारों
फिर जरा सी बुराइयों का हिसाब क्या रखे ।

Tuesday, 3 October 2017

भारतीय समाज ओर बुराइया

भाइयों और बहनों,

हमारे देश का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। हजारों साल का इतिहास समेटे हुए हुए हमारे देश में समय के साथ परिवर्तन आते रहे हैं। व्यक्ति में परिवर्तन, समाज में परिवर्तन। लेकिन समय के साथ ही कई बार कुछ बुराइयां भी समाज में व्याप्त हो जाती हैं।

ये हमारे समाज की विशेषता है कि जब भी ऐसी बुराइयां आई हैं, तो सुधार का काम समाज के बीच में ही किसी ने शुरू किया है। एक काल ऐसा भी आया जब इसका नेतृत्व हमारे देश के साधु-संत समाज के हाथ में था। ये भारतीय समाज की अद्भुत क्षमता है कि समय-समय पर हमें ऐसे देवतुल्य महापुरुष मिले, जिन्होंने इन बुराइयों को पहचाना, उनसे मुक्ति का रास्ता दिखाया।

श्री मध्वाचार्य जी भी ऐसे ही संत थे, समाज सुधारक थे, अपने समय के अग्रदूत थे। उनेक ऐसे उदाहरण हैं जब उन्होंने प्रचलित कुरीतियों के खिलाफ, अपने विचार रखे, समाज को नई दिशा दिखाई। यज्ञों में पशुबलि बंद कराने का सामाजिक सुधार श्री मध्वाचार्य जी जैसे महान संत की ही देन है।

हमारा इतिहास गवाह है कि हमारे संतों ने सैकड़ों वर्ष पहले, समाज में जो गलत रीतियां चली आ रही थीं, उन्हें सुधारने के लिए एक जनआंदोलन शुरू किया। उन्होंने इस जनआंदोलन को भक्ति से जोड़ा। भक्ति का ये आंदोलन दक्षिण भारत से चलकर महाराष्ट्र और गुजरात से होते हुए उत्तर भारत तक पहुंचा था।

उस भक्ति युग में, उस कालखंड में, हिंदुस्तान के हर क्षेत्र, पूर्व-पश्चिम उत्तर-दक्षिण, हर दिशा, हर भाषा-भाषी में मंदिरों-मठों से बाहर निकलकर हमारे संतों ने एक चेतना जगाने का प्रयास किया, भारत की आत्मा को जगाने का प्रयास किया।

भक्ति आंदोलन की लौ दक्षिण में मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य, वल्लभचार्य, रामानुजाचार्य, पश्चिम में मीराबाई, एकनाथ, तुकाराम, रामदास, नरसी मेहता, उत्तर में रामानंद, कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, गुरु नानकदेव, संत रैदास, पूर्व में चैतन्य महाप्रभु, और शंकर देव जैसे संतों के विचारों से सशक्त हुई। इन्हीं संतों, इन्हीं महापुरुषों का प्रभाव था कि हिंदुस्तान उस दौर में भी तमाम विपत्तियों को सहते हुए आगे बढ़ पाया, खुद को बचा पाया।

आदि शंकराचार्य ने देश के चारों कोनों में जाकर लोगों को सांसारिकता से ऊपर उठकर ईश्वर में लीन होने का रास्ता दिखाया। रामानुजाचार्य ने विशिष्ट द्वैतवाद की व्याख्या की। उन्होंने भी जाति की सीमाओं से ऊपर उठकर ईश्वर को प्राप्त करने का रास्ता दिखाया।
वो कहते थे कर्म, ज्ञान और भक्ति से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। उन्हीं के दिखाए रास्ते पर चलते हुए संत रामानंद ने सभी जातियों और धर्मों के लोगों को अपना शिष्य बनाकर जातिवाद पर कड़ा प्रहार किया।

संत कबीर ने भी जाति प्रथा और कर्मकांडों से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए अथक प्रयास किया।
वो कहते थे- पानी केरा बुलबुला- अस मानस की जात...
जीवन का इतना बड़ा सत्य उन्होंने इतने आसान शब्दों में हमारे समाज के सामने रख दिया था।

गुरु नानक देव कहते थे- मानव की जात सभो एक पहचानबो।

संत वल्लभाचार्य ने स्नेह और प्रेम के मार्ग पर चलते हुए मुक्ति का रास्ता दिखाया।

चैतन्य महाप्रभु ने भी अस्पृश्यता के खिलाफ समाज को नई दिशा दिखाई।

संतो की ऐसी श्रंखला भारत के जीवंत समाज का ही प्रतिबिंब है, परिणाम है। समाज में जो भी चुनौती आती है, उसके उत्तर आध्यात्मिक रूप में प्रकट होते हैं। इसलिए पूरे देश में शायद ही ऐसा कोई जिला या तालुका होगा, जहां कोई संत ना जन्मा हो। संत, भारतीय समाज की पीड़ा का उपाय बनकर आए,
अपने जीवन, अपने उपदेश और साहित्य से उन्होंने समाज को सुधारने का काम किया।

भक्ति आंदोलन के दौरान धर्म, दर्शन और साहित्य की एक ऐसी त्रिवेणी स्थापित हुई, जो आज भी हम सभी को प्रेरणा देती है। इसी दौर में रहीम ने कहा था –

वे रहीम नर धन्य हैं,
पर उपकारी अंग,
बांटन वारे को लगे,
ज्यों मेहंदी को रंग...

मतलब जिस प्रकार मेहंदी बांटने वाले के हाथ पर मेहंदी का रंग लग जाता है, उसी तरह से जो परोपकारी होता है, दूसरों की मदद करता है, उनकी भलाई के काम करता है, उसका भी अपने आप भला हो जाता है।

भक्ति काल के इस खंड में रसखान, सूरदास, मलिक मोहम्मद जायसी, केशवदास, विद्यापति जैसी अनेक महान आत्माएं हुईं जिन्होंने अपनी बोली से, अपने साहित्य से समाज को ना सिर्फ आईना दिखाया, बल्कि उसे सुधारने का भी प्रयास किया।

मनुष्य की जिंदगी में कर्म, इंसान के आचरण की जो महत्ता है, उसे हमारे साधु संत हमेशा सर्वोपरि रखते थे। गुजरात के महान संत नरसी मेहता कहते थे- वाच-काछ-मन निश्चल राखे, परधन नव झाले हाथ रे।
यानि व्यक्ति अपने शब्दों को, अपने कार्यों को और अपने विचारों को हमेशा पवित्र रखता है।
अपने हाथ से दूसरों के धन को स्पर्श ना करे। आज जब देश कालेधन और भ्र