|| बिखरते परिवार ||
[ नीचे लिखे गए विचारों को इस उद्देश्य के साथ लिखा जा रहा है कि आज के बिखरते परिवारों, टूटते रिश्तों और पारिवारिक समस्याओ की मूल जड़ को समझा जा सके और इस आधार पर हम अपने परिवारों को पुन: स्थापित कर सके और विश्व के लिए एक आदर्श स्थापित कर सके जेसा हमने प्राचीन काल में किया था । इस लेख के पाठकों से अनुरोध है कि लेख में दिए गए विचारों को हर जगह फैला दे, ऐसा तभी हो सकता है जब आप लेख को 'लाइक' के साथ साथ 'शेयर' भी करे । ]
एक परिवार कुछ व्यक्तियों के एक साथ रहने से बनता है जिसमे वे एक दूसरे के साथ कुछ रिश्तों से जुड़े होते हैं जेसे अभिभावक, बेटा-बेटी, भाई-बहन और माता-पिता । ये रिश्ते एक-दूसरे के प्रति प्रेम, सम्मान, सहनशीलता, शिष्टता, विश्वास, ईमानदारी, साहस और अनुशासन जेसे मानवीय गुणों से बंधे रहते हैं और एक मजबूत, सुखी परिवार कि रचना करते हैं | जब पिता अपने बेटे से गुस्से में कुछ कहता है तो बेटे की सहनशीलता और शिष्टता बेटे को पिता की डांट चुपचाप बिना विरोध किये सुनने को प्रेरित करती है । पत्नी, बेटा और बेटी सब पिता को मुखिया मान के उसका सम्मान करते हैं और उसके अनुशासन में रहते हैं | इसी तरेह पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और ईमानदारी दोनों को एक दूसरे का अंग बना देते हैं और जीवन भर का अटूट रिश्ता बन जाता है । पति और पत्नी यदि कुछ दिनों के लिए अलग हो जाये तो उन्हें केसा लगता है यह वही बता सकते हैं जिनके ऊपर ये बीतती है । जब परिवार पर कोई आर्थिक या शारीरिक संकट आता है तो किस तरेह माता पिता का साहस काम आता है ये हम सभी जानते हैं । तो प्रेम, सम्मान, सहनशीलता, शिष्टता, विश्वास, ईमानदारी, साहस और अनुशासन ये मानवीय गुण किस तरेह एक अटूट परिवार की रचना करते हैं ये हमने इन लाइनों से जाना । हाल ही मैं पिता बना हूँ ये एक ऐसा अनुभव था जिसे पिता बनने से पहले मैंने कभी अनुभव नहीं किया था । जब मैंने अपनी फार्मेसी की डिग्री के लिए पहली बार घर से बाहर कदम रखा था तो बड़ा उत्साहित था बाहर रहने और तकनीकी शिक्षा ग्रहन करने के लिए तो इस खुसी से मुझे अपने माता पिता से दूर जाते हुए ज्यादा दुःख नहीं हुआ लेकिन मैं ये भूल गया था की मेरे माता पिता के साथ शायद ऐसा नहीं था । उन्होंने २२ साल तक अपने बेटे को कभी अपनी आँखों के सामने से दूर नहीं होने दिया था और अब बेटा शायद हमेशा के लिए दूर हो रहा था .....ये एक ऐसा अनुभव था जिसे आज मैं ये लाइन लिखते हुए अनुभव कर रहा हूँ और इसी कारन आज मेरी आँखे भी नम हैं । मित्रो अपने बेटा-बेटी से दूर रहना क्या होता है ये वो कभी नहीं समझ सकते जो अभी माता पिता नहीं बने हैं । मेरे बाहर रहने के बाद शायद ही कभी मेरे माता पिता ने मुझे ये जताया हो कि वो मेरे जाने के बाद कितने दुखी थे और अपने कलेजे पे पत्थर रख के अपने दिन अकेले काट रहे थे । इस बात का अनुभव मुझे २००९ की जन्मास्टमी को हुआ जब मेरी माँ ने मुझे फ़ोन किया और बात करते करते फ़ोन पे बस ये बोला कि "आज घर में बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा ......तुम होते तो आज घर का मंदिर सजा रहे होते...." फिर उनका गला भारी हो गया और कुछ बोल नहीं पा रही थी । मेरी माँ रो रही थी । मेरी आँखों से भी आंसू निकलने लगे और मेरी माँ ने फ़ोन रख दिया । ये अनुभव मेरे लिए नया था पर मेरे माता पिता के लिए उतना ही पुराना था जब से मैं घर से बाहर निकला था । उनका हर दिन मेरी याद में निकलता था और न जाने कितने बार उनकी आँखों से आंसू निकलते होंगे । मित्रों मैंने अपनी याद में शायद ही कभी अपने माता पिता को दुःख दिया हो । एक माता पिता का सपना होता है कि वो अपने बेटे की शादी अपनी पसंद से करे मैंने उनकी इस इच्छा को बहुत पहले ही समझ लिया था और उनकी पसंद से ही शादी की और हम पति पत्नी के बीच प्यार और मेरे माता पिता का अपनी बहू के लिए प्यार इतना ज्यादा है कि मेरी पत्नी को अपने माता पिता और मेरे से दूर रहने पर भी ज्यादा परेशानी नहीं होती । आज की पड़ी लिखी पीड़ी में ज्यादातर हम अपनी पसंद से शादी करते हैं और इस बात का बिलकुल ध्यान नहीं रखते कि हमारे माता पिता की क्या इच्छा थी ? हम जवानी के जोश को प्यार कहते हैं और जो माता पिता सच्चे प्रेम का जीता जागता उदाहरण हैं उनका विरोध कर के उनको मजबूर कर देते हैं और अगर वो नहीं मानते हैं तो उनको धमकी देते है खुद के मर जाने की .....मित्रो हम क्या मरेगे? हम तो अपने माता पिता को जीते जी मारते हैं |
आज प्यार का नाम अपने जेहन में आते ही दो युवा विपरीत लिंगो को एक दूसरे के प्रति शारीरिक आकर्षण और कभी कभी भावनात्मक बंधन में बंधा हुआ पाते हैं । लेकिन हमने ये कैसे मान लिया कि प्रेम जैसा मानवीय और दैवीय गुण केवल युवा विपरीत लिंगो के बीच की कहानी भर है? इसका उत्तर आज से २० साल पहले हिंदी फिल्मो से मिलेगा जिसने आज के युवाओ की सोच और जीवन शैली बद्द से बद्दतर बना दी है । हिंदी फिल्मो ने हमें २० साल पहले धीरे धीरे सेक्स परोसना सुरु किया लेकिन ये सेक्स खुले रूप से सामने नहीं था, ये प्रेम की चादर ओड के युवाओं और युवतियों के स्वाभाविक आकर्षण को उकसाने के काम कर रहा था । आज २० साल बाद प्रेम की चादर हट चुकी है और हिंदी फिल्मे खुले रूप में नग्नता परोस रही है ।आज प्यार और सेक्स में ज्यादा अंतर नहीं रहा है ।
मित्रो आज हमें अपने परिवारों में फिर से शुख शांति लानी है तो आज हमें अपने विवेक को काम में लाना पड़ेगा और वास्तविकता को समझ के फिर से अपनी जीवन शैली और विचारो को बदलना होगा । आज हमारे जीवन की कहानी हिंदी फिल्मो के हाथ में हैं, आज हमारी पसंद नापसंद फिल्मो, नाटकों और ऐड पर दिखाए जा रहे कार्यक्रमों पे निर्भर कर रही है । जरा सोचिये यदि आपको १ साल तक पूरे परिवार के साथ रहने दिया जाये और फिल्मो, नाटकों और ऐड से बिलकुल दूर कर दिया जाये तो क्या होगा ? मैं बताता हूँ क्या होगा- आपका मनोरंजन अब माता, पिता, भाई, बहन के साथ बातें करते हुए और घर के काम करते हुए बीतेगा और ये मनोविज्ञान बताता है कि जिसके साथ ज्यादा समय बिताया जाता है उसके साथ स्वाभाविक लगाव और प्रेम उत्पन्न हो जाता है और वही हमारा व्यवहार बन जाता है । और इस तरेह जब हम १ साल अपने परिवार के साथ बिना फिल्मो, नाटकों और ऐड देखे हुए (जैसे हम ३० साल पहले बिताते थे ) बितायेगे तो आप एक ऐसे भावनाशील, जिम्मेदार और सबसे प्रेम करने वाले (न कि केवल युवतियों से ) व्यक्ति बन के समाज के सामने आयेगे जो एक खुशहाल और सुखी परिवार कि नीव रखेगा । ऐसा व्यक्ति अब न तो किसी फिल्मो से बदल सकता है और न ही किसी ऐड से, उसकी सोच उसके स्वाभाविक गुण 'विवेक' पर निर्भर करेगी । ऐसे व्यक्ति को हर कोई अपनाना चाहेगा और वो भी अपने से जुड़े हर परिजन को अपने स्वाभाव "प्रेम" से मन्त्र-मुग्ध कर सकता है।
मित्रो यहाँ बताये हुए उपाय का ये मतलब नहीं है कि आप एक साल तक फिल्मे, नाटक और ऐड न देखे । यहाँ लिखी हुई लाइनों का उद्देश्य यही है कि आप अपने जिन्दगी और सोच प्राकृतिक रखे और फिल्मे, नाटक और ऐड को अपने ऊपर हावी न होने दे । आपकी जीवन शैली, खान पान, पहनना ओढना, रीति रिवाज- फिल्मे, नाटक और ऐड पर निर्भर नहीं होना चाहिए बल्कि ये हमारी वास्तविक जरूरत और परिवार के माहोल पर निर्भर करनी चाहिए तभी हम एक अटूट परिवार कि रचना कर पाएगे ।
मित्रो आज हमें अपने माता पिता और परिवार पे ध्यान देने की जरूरत है ना कि फिल्मो की बनावटी जिन्दगी पे जो साधारण सी कमाई वाले को हाई फाई बनावटी जिन्दगी जीने के लिए मजबूर करती है और शादीसुदा को कही दूसरी जगह मूह मरने के लिए प्रेरित करती है और परिवारों में अशांति पैदा करती है । मित्रो कहने और लिखने के लिए बहुत कुछ है लेकिन आज मैं अपने इन विचारों को यही विराम देना चाहूँगा और आप से अपेक्षा रखूँगा कि शायद मेरा ये प्रयत्न आपके परिवार को और ज्यादा सुखी और आदर्श परिवार का रूप दे सके ।
लेखक
नरेन् सोलंकी
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